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हरिहरपुरी के सोरठे




हरिहरपुरी के सोरठे


ज्ञान गंग में स्नान, नित्य जो करता रहता।

बन जाता विद्वान, एक दिन निश्चित मानो।।


कभी न कुटिल कुरंग, जगत में पूजा जाता।

करता सदा कुसंग,नारकीय दानव पतित।।


मटमैले की बात, कभी न होती  शुभ सुखद ।

दिन को कहता रात, बुद्धिहीन मतिमन्द बहु।।


जिस के मन में घात, उसे मत मीत बनाओ।

करे सदा आघात, पापी निशिचर कुटिल अति।।


मूरख सहज कुतर्क, करता रहता रात-दिन।

देते बौद्धिक तर्क, सप्रमाण विद्वानगण ।।


मानवता से नेह, लगाते सज्जन साधू।

लगती सुंदर देह, चित्त निर्मल जिसका है।। 


उस का मन है धाम,जिस में पावन सोच है।

मन पाता विश्राम, छल-प्रपंच से दूर हो।।






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2 Comments

Sachin dev

31-Dec-2022 06:06 PM

Lajavab

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